भाग 1: शिकारगाह का रहस्य
घने जंगल के बीच एक ऐसा इलाका था, जिसे लोग “शिकारगाह” कहते थे। यह जंगल अपने अजीबो-गरीब रहस्यों और खतरनाक कहानियों के लिए मशहूर था। कहते हैं, जो भी इस जंगल में शिकार करने गया, वह वापस नहीं लौटा।
रामेश्वर, एक मशहूर शिकारी, इन कहानियों को महज अंधविश्वास मानता था। एक दिन उसने अपने दोस्तों के साथ शिकारगाह जाने का फैसला किया। उसका मानना था कि वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं है और वो इन कहानियों को झूठा साबित करेगा।
जंगल के किनारे पर पहुँचते ही अजीब सी खामोशी ने उनका स्वागत किया। पत्तों की सरसराहट और दूर कहीं उल्लू की आवाज ने माहौल को और डरावना बना दिया। “यहाँ कुछ खास नहीं,” रामेश्वर ने हँसते हुए कहा। लेकिन उसके दोस्त, रघु और मोहन, सहमे हुए थे।
जैसे ही वे जंगल के अंदर बढ़े, पेड़ और घना होने लगे। एक पुराना, टूटा हुआ बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर लिखा था:
“यहाँ से आगे बढ़ना मना है।”
रामेश्वर ने इसे नज़रअंदाज़ किया और आगे बढ़ने लगा। उनके कदमों की आवाज मिट्टी और सूखे पत्तों पर गूँज रही थी। लेकिन अचानक, वह आवाज रुक गई।
“यह आवाज क्यों बंद हो गई?” रघु ने धीमे स्वर में पूछा।
रामेश्वर ने ध्यान दिया कि जंगल में अब कोई पक्षी नहीं चहचहा रहे थे, न ही हवा चल रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा जंगल साँस रोक कर देख रहा हो।
अचानक एक चीख गूँज उठी।
भाग 2: जंगल की चुड़ैल
रामेश्वर, रघु, और मोहन चीख सुनकर सन्न रह गए। वह चीख किसी इंसान की लग रही थी, लेकिन आवाज ऐसी थी जैसे दर्द और डर से भरी हो। रामेश्वर ने खुद को संभालते हुए कहा, “किसी जानवर ने शिकार किया होगा। डरो मत।”
मोहन ने काँपती आवाज में कहा, “यह आवाज किसी इंसान की थी। रामेश्वर, हमें यहाँ से लौट जाना चाहिए।”
लेकिन रामेश्वर ने उसकी बात अनसुनी कर दी। “कायर मत बनो! चलो, देखते हैं कौन है।”
चीख की दिशा में चलते हुए, वे एक पुराने खंडहर के पास पहुँचे। वह जगह बेहद डरावनी थी। दीवारों पर अजीब से निशान थे, और जमी हुई धूल ने बताया कि यहाँ कोई बरसों से नहीं आया। खंडहर के पास एक पेड़ पर किसी महिला की सफेद साड़ी फटी हुई टंगी थी।
“यह क्या जगह है?” रघु ने धीमे स्वर में पूछा।
तभी हवा चलने लगी। पेड़ों के पत्ते जोर से हिलने लगे, और एक ठंडी सिहरन उनके शरीर में दौड़ गई। अचानक, खंडहर के अंदर से धीमी हँसी की आवाज आई। हँसी ऐसी थी, जैसे कोई औरत बेहद पास खड़ी हो और उन्हें देख रही हो।
“क…कौन है वहाँ?” रामेश्वर ने हिम्मत करके पूछा।
हँसी अचानक बंद हो गई। खामोशी ऐसी थी कि उनकी धड़कनें तक सुनाई दे रही थीं। तभी खंडहर के अंधेरे से एक महिला की परछाई बाहर आई। उसका चेहरा अस्पष्ट था, लेकिन उसकी आँखें आग जैसी जल रही थीं। उसके लंबे बाल हवा में लहरा रहे थे।
“तुमने इस जंगल में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?” उसने गूँजती हुई आवाज में पूछा।
रघु और मोहन डर के मारे पीछे हटने लगे, लेकिन रामेश्वर ने अपनी बंदूक तान दी। “तुम कौन हो?” उसने चिल्लाते हुए कहा।
महिला की परछाई ने जोर से हँसते हुए कहा, “मुझे इस जंगल के लोग चुड़ैल कहते हैं। जो भी यहाँ आता है, वह वापस नहीं जाता। और अब तुम भी…।”
अचानक, उसके हाथ हवा में उठे, और पूरा जंगल झंझावात में घिर गया। रघु और मोहन डर से भागने लगे, लेकिन रामेश्वर अपनी जगह खड़ा रहा। उसकी बंदूक से गोली चली, लेकिन चुड़ैल पर उसका कोई असर नहीं हुआ।
“अब तुम्हारा शिकार शुरू होगा,” चुड़ैल ने कहा और उसकी हँसी जंगल में गूँजने लगी।
भाग 3: तांत्रिक का आह्वान
रामेश्वर, रघु और मोहन किसी तरह भागकर जंगल के किनारे पहुँचे। उनके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। मोहन ने कहा, “हमें इस जंगल में वापस नहीं जाना चाहिए। ये जगह सच में श्रापित है।”
लेकिन रामेश्वर ने हार मानने से इनकार कर दिया। “मैं ये सब छोड़कर भागने वालों में से नहीं हूँ। अगर सच में वो कोई चुड़ैल है, तो इसका कोई उपाय भी होगा। हमें एक तांत्रिक की मदद लेनी होगी।”
रघु और मोहन ने डरते-डरते हामी भरी। गाँव के बुजुर्गों से पूछने पर उन्हें पास के एक गाँव में मशहूर तांत्रिक “आचार्य भैरवनाथ” का पता चला। कहते थे कि भैरवनाथ ने कई अजीबो-गरीब घटनाओं को सुलझाया था और भूत-प्रेतों को काबू में किया था।
तांत्रिक का आगमन
आचार्य भैरवनाथ ने सबकी बातें ध्यान से सुनीं। उनकी आँखों में गंभीरता थी। “यह कोई साधारण आत्मा नहीं है,” उन्होंने कहा। “यह चुड़ैल न सिर्फ शक्तिशाली है, बल्कि इसे जंगल की आत्माओं का भी सहारा है। लेकिन मुझे इस पर विजय पाने का तरीका पता है।”
भैरवनाथ ने अपने सामान की गठरी खोली। उसमें कई तरह की चीजें थीं—त्रिशूल, माला, राख, और एक ध्वज जिस पर अजीब से मंत्र लिखे थे। उन्होंने कहा, “मैं एक विशेष अनुष्ठान करूँगा। लेकिन इसके लिए हमें उसी खंडहर में जाना होगा।”
रामेश्वर ने बिना झिझक हामी भर दी। तांत्रिक, रामेश्वर, रघु, और मोहन उस रात शिकारगाह के खंडहर में लौट आए।
अनुष्ठान की शुरुआत
खंडहर पहुँचते ही भैरवनाथ ने चारों तरफ पवित्र राख छिड़कनी शुरू की और मंत्रोच्चार करने लगे। जंगल एक बार फिर अजीब खामोशी में डूब गया। तभी, हवा फिर से तेज चलने लगी और वही डरावनी हँसी गूँज उठी।
“तुमने इस जंगल में फिर कदम रखने की हिम्मत की?” चुड़ैल की गूँजती हुई आवाज आई। खंडहर के अंधेरे से वही आग जैसी जलती आँखें दिखाई देने लगीं।
भैरवनाथ ने त्रिशूल उठाकर मंत्रो का जाप और तेज कर दिया। “अब तेरा अंत निश्चित है!” उन्होंने घोषणा की।
लेकिन चुड़ैल जोर से हँस पड़ी। “तू क्या समझता है, ये तेरा तंत्र-मंत्र मुझे रोक सकेगा? इस जंगल में मेरी शक्ति असीम है।”
भैरवनाथ ने पूरी ताकत से अपनी राख चुड़ैल की ओर फेंकी। परंतु चुड़ैल ने अपने हाथ हिलाए, और राख बीच हवा में जलकर गायब हो गई। त्रिशूल भी उससे कुछ कदम पहले रुककर जमीन पर गिर पड़ा।
“तुम लोग मेरे जंगल में आए और मुझे चुनौती दी?” चुड़ैल चिल्लाई। उसकी आवाज अब इतनी तीव्र थी कि रघु और मोहन अपने कान बंद करने लगे।
तांत्रिक की हार
भैरवनाथ ने कई मंत्र पढ़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार चुड़ैल उसकी शक्ति को मात दे रही थी। “यह आत्मा इतनी ताकतवर कैसे हो सकती है?” भैरवनाथ ने थके हुए स्वर में कहा।
चुड़ैल ने धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ते हुए कहा, “तुम्हारे जैसे कई लोग आए, लेकिन यह जंगल मेरी शक्ति है। और अब तुम सबका अंत होगा।”
रामेश्वर ने अपनी बंदूक उठाने की कोशिश की, लेकिन चुड़ैल ने एक झटके में उसे दूर फेंक दिया।
भाग 4: चुड़ैल का राज ( एक पुरानी कहानी का राज )
जंगल के बीचों-बीच, भैरवनाथ और रामेश्वर हार के करीब थे। चुड़ैल की ताकत के आगे सब बेबस लग रहे थे। लेकिन तभी, खंडहर के एक कोने में रघु की नजर पुराने पत्थर पर पड़ी। उस पर अजीब तरह के चित्र और संस्कृत के श्लोक खुदे हुए थे।
“यह क्या है?” रघु ने पत्थर को छूते हुए कहा।
भैरवनाथ ने तुरंत उसकी ओर देखा। “यह पत्थर इस चुड़ैल के इतिहास का राज खोल सकता है। इसे पढ़ने दो।” उन्होंने पत्थर पर खुदे हुए शब्दों को जोर से पढ़ना शुरू किया।
“यह जंगल कभी देवी काली का साधना स्थल था। लेकिन एक लालची और निर्दयी महिला ने यहाँ तांत्रिक विद्या का दुरुपयोग किया। उसका नाम चंद्रिका था। उसने अमरता पाने के लिए कई निर्दोषों की बलि दी। देवी काली ने उसे श्राप दिया कि वह इसी जंगल में आत्मा बनकर भटकेगी, और कभी मुक्ति नहीं पाएगी।”
चुड़ैल जोर से चीखी, “ये पत्थर मत पढ़ो! इसे छोड़ दो!”
भैरवनाथ ने समझ लिया कि चुड़ैल को हराने का यही उपाय है। उन्होंने श्लोकों को जोर-जोर से पढ़ना शुरू कर दिया। चुड़ैल दर्द से तड़पने लगी। उसकी आवाज कमजोर पड़ने लगी।
चुड़ैल का हमला
लेकिन चुड़ैल इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। उसने अपनी पूरी शक्ति इकट्ठा की और भैरवनाथ पर झपट पड़ी। उसकी आग जैसी जलती आँखें और तेज हो गईं। भैरवनाथ पीछे हट गए, और उनके हाथ से त्रिशूल गिर गया।
“अब तुम्हारा अंत निश्चित है!” चुड़ैल ने कहा।
रामेश्वर ने अपनी हिम्मत जुटाई और त्रिशूल को उठाया। “अगर यह जंगल देवी काली का है, तो उनकी शक्ति हमें बचाएगी!” उसने त्रिशूल को चुड़ैल की ओर फेंका।
त्रिशूल सीधा चुड़ैल के सीने में जा धंसा। एक जोरदार चीख के साथ चुड़ैल का शरीर आग की लपटों में बदलने लगा।
मुक्ति या धोखा?
चुड़ैल की चीखें धीरे-धीरे शांत हो गईं। आग बुझ गई, और जंगल फिर से खामोश हो गया। रामेश्वर, रघु, और मोहन ने राहत की सांस ली। भैरवनाथ ने कहा, “तुमने सही किया, रामेश्वर। देवी काली की शक्ति ने तुम्हें सही समय पर बचाया। अब इस जंगल से चुड़ैल का आतंक खत्म हो गया है।”
लेकिन जैसे ही वे जंगल से बाहर निकलने लगे, हवा में एक धीमी हँसी गूँज उठी।
“क्या सच में सब खत्म हो गया?” रामेश्वर ने मुड़कर देखा।
खंडहर के पास वही जलती हुई आँखें दोबारा दिखाई दीं।
भाग 5: जंगल का अंतिम रहस्य
रामेश्वर और उसके साथियों के कदम जंगल से बाहर निकलने को तैयार थे, लेकिन पीछे से आती धीमी हँसी ने उनके कदम रोक दिए। खंडहर के पास जलती आँखें दोबारा दिखाई दीं।
“तुमने सोचा कि त्रिशूल से मेरा अंत हो जाएगा?” चुड़ैल की आवाज गूँज उठी। “मैं इस जंगल का अभिशाप हूँ, और अभिशाप को खत्म करना इतना आसान नहीं।”
भैरवनाथ ने उसे देखकर कहा, “यह आत्मा अपनी मूल शक्ति से बंधी हुई है। जब तक इसका असली स्रोत नष्ट नहीं होगा, यह लौटती रहेगी। हमें उस खंडहर के नीचे छिपे रहस्य को खोजने की जरूरत है।”
उन्होंने खंडहर की गहराई में जाने का फैसला किया।
खंडहर के नीचे का रहस्य
खंडहर में एक पुरानी सीढ़ी दिखाई दी, जो नीचे की ओर जा रही थी। सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उन्होंने देखा कि वहाँ एक गुफा थी। गुफा के बीचों-बीच एक बड़ा तांत्रिक यंत्र बना हुआ था। चारों तरफ काले धागों से लिपटे हुए मटके और हड्डियों के ढेर पड़े थे। गुफा के केंद्र में एक तांत्रिक पुस्तक रखी हुई थी।
भैरवनाथ ने पुस्तक को देखा और कहा, “यही वह पुस्तक है जिससे चंद्रिका ने अमरता का रहस्य सीखा था। इसका नाश करना ही उसका अंत कर सकता है।”
रामेश्वर ने आग लगाने के लिए माचिस निकाली। जैसे ही उसने पुस्तक को जलाने की कोशिश की, गुफा हिलने लगी।
चुड़ैल की काली परछाई गुफा के कोने से निकली और जोर से चिल्लाई, “अगर तुमने इस पुस्तक को जलाया, तो मैं तुम्हारे प्राण ले लूँगी!”
अंतिम संघर्ष
भैरवनाथ ने कहा, “डरो मत! यही उसकी शक्ति का केंद्र है। अगर यह नष्ट हुआ, तो वह हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी।”
रामेश्वर ने हिम्मत जुटाई और पुस्तक को जलाने का प्रयास किया। चुड़ैल ने हवा में हाथ उठाया, और गुफा के पत्थर गिरने लगे। मोहन और रघु डरकर एक कोने में सिमट गए।
आखिरकार, माचिस की लौ पुस्तक तक पहुँची। पुस्तक जलने लगी। जैसे-जैसे पुस्तक की राख हवा में उड़ने लगी, चुड़ैल की चीखें और तेज होती गईं। उसकी परछाई काँपने लगी और धीरे-धीरे गायब हो गई।
“तुमने मुझे खत्म कर दिया… लेकिन इस जंगल का अभिशाप हमेशा रहेगा,” चुड़ैल की आवाज धीमे होते-होते गुम हो गई।
शिकारगाह की मुक्ति
जैसे ही चुड़ैल खत्म हुई, गुफा शांत हो गई। रामेश्वर, रघु, मोहन, और भैरवनाथ गुफा से बाहर निकले। जंगल अब हल्का और शांत महसूस हो रहा था। पक्षियों की आवाजें लौट आई थीं।
“अब यह जंगल आजाद है,” भैरवनाथ ने कहा।
रामेश्वर ने आसमान की ओर देखा और राहत की सांस ली। “यह सब खत्म हो गया। अब कोई और इस जंगल का शिकार नहीं बनेगा।”
लेकिन जैसे ही वे जंगल से बाहर निकले, हवा में एक हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी:
“क्या यह सच में खत्म हो गया?”
(या शायद कहानी का अंत अभी बाकी है…)